सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि विशिष्ट राहत अधिनियम, 1963 (Specific Relief Act (SRA)) की धारा 12(3) के तहत अनुबंध के आंशिक निष्पादन का दावा तब नहीं किया जा सकता, जब निष्पादित न किया गया हिस्सा पर्याप्त और गैर-पृथक हो और वादी न तो निष्पादित न किए गए हिस्से या नुकसान के लिए दावों को छोड़ता है और न ही अनुबंध को निष्पादित करने के लिए तत्परता दिखाता है। SRA की धारा 12(3) के अनुसार, अनुबंध के आंशिक निष्पादन का दावा करने के लिए वादी को या तो अनुबंध के अप्रतिपादित हिस्से से जुड़े दावों को छोड़ना होगा या अनुबंध के लिए सहमत प्रतिफल का पूरा भुगतान करके अनुबंध को निष्पादित करने के लिए तत्परता और इच्छा व्यक्त करनी होगी
जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ मद्रास हाईकोर्ट से उत्पन्न मामले की सुनवाई कर रही थी, जहां याचिकाकर्ता/वादी ने बिक्री के समझौते के विशिष्ट निष्पादन की मांग की थी। यह मुकदमा अनुबंध के विशिष्ट निष्पादन या वैकल्पिक रूप से क्षतिपूर्ति के साथ अग्रिम भुगतान की वापसी के लिए था। हाईकोर्ट ने अपील को खारिज कर दिया, ट्रायल कोर्ट के निर्णय की पुष्टि करते हुए, जिसने विशिष्ट निष्पादन के लिए प्रार्थना खारिज की, यह कहते हुए कि वादी अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक नहीं था।
याचिकाकर्ता/वादी ने SRA की धारा 12(3) का हवाला देते हुए बिक्री के लिए समझौते के आंशिक निष्पादन की मांग की, जिसके लिए उसने अग्रिम के रूप में 20 लाख रुपये का भुगतान किया और अनुबंध के अधूरे हिस्से के लिए शेष 64 लाख रुपये का भुगतान नहीं किया, जो अनुबंध का महत्वपूर्ण हिस्सा था। उन्होंने अनुबंध के शेष हिस्से के लिए अपने दावों को नहीं छोड़ा। इसके बजाय उन्होंने क्षतिपूर्ति और अग्रिम की वापसी की मांग की, जो अनुबंध के अधूरे हिस्से के लिए अपने दावों को पूरी तरह से त्यागने में उनकी अनिच्छा को दर्शाता है, जो धारा 12(3) के तहत एक प्रमुख आवश्यकता है।
याचिकाकर्ता के तर्क को खारिज करते हुए न्यायालय ने हाईकोर्ट के निर्णय की पुष्टि की और कहा कि याचिकाकर्ता SRA की धारा 12(3) का हवाला देकर अनुबंध के आंशिक निष्पादन का दावा नहीं कर सकता, क्योंकि उसने न तो अनुबंध के अधूरे हिस्से के लिए मुआवजे के सभी दावों या अधिकारों को त्यागा है और न ही अनुबंध का पूरा भुगतान किया, जो धारा 12(3) का हवाला देने के लिए अनिवार्य शर्त है। न्यायालय ने कहा, अधिनियम की धारा 12(3) की भाषा से ही आंशिक राहत देने की शक्ति न्यायालय के विवेकाधीन है, जिसका प्रयोग प्रत्येक मामले के तथ्यों और परिस्थितियों तथा संबंधित पक्षों के अधिकारों और हितों को ध्यान में रखते हुए किया जाना चाहिए। अधिनियम की धारा 12(3) का हवाला केवल तभी दिया जा सकता है, जब अनुबंध की शर्तें संपत्ति में पक्षों के अधिकारों और हितों को अलग करने की अनुमति देती हों।” न्यायालय ने आगे कहा, “निचली अदालतों द्वारा दर्ज किए गए विशिष्ट निष्कर्ष के मद्देनजर कि वादी अनुबंध के अपने हिस्से को पूरा करने के लिए तैयार और इच्छुक नहीं था। वादी के चूक करने के कारण उसे अधिनियम की धारा 12(3) को लागू करने का हकदार नहीं कहा जा सकता।” तदनुसार, न्यायालय ने अपील खारिज कर दी गई।
केस टाइटल: विजय प्रभु बनाम एस.टी. लाजपति और अन्य।