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सुप्रीम कोर्ट ने Online RTI Portals स्थापित करने के निर्देशों के अनुपालन पर राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा

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सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (23 सितंबर) को प्रवासी लीगल सेल बनाम भारत संघ एवं अन्य के मामले में देश के सभी राज्यों में ऑनलाइन RTI पोर्टल स्थापित करने के निर्देशों का अनुपालन न करने का आरोप लगाने वाली अवमानना ​​याचिका पर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से जवाब मांगा।

चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने अनुज नाकाड़े द्वारा दायर अवमानना ​​याचिका पर नोटिस जारी किया, जिसमें आरोप लगाया गया कि 7 राज्यों और 4 केंद्र शासित प्रदेशों ने अभी तक Online RTI Portals स्थापित नहीं किए हैं, जबकि कई अन्य राज्यों के पोर्टल पर या तो अधिकारियों की बोर्डिंग अधूरी है या वे सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के “भारत सरकार की वेबसाइट 3.0 के लिए दिशा-निर्देश” (दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिए पोर्टल की पहुंच से संबंधित) का पालन नहीं करते हैं।

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“राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करें, सरकारी वकीलों को सेवा देने की स्वतंत्रता, व्यक्तिगत उपस्थिति इस चरण में समाप्त की जाती है।”

मार्च 2023 में प्रवासी कानूनी प्रकोष्ठ में सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को तीन महीने के भीतर Online RTI Portals स्थापित करने का निर्देश दिया, यदि उन्होंने ऐसा पहले से नहीं किया है।

सीजेआई चंद्रचूड़, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जेबी पारदीवाला की पीठ ने हाईकोर्ट में सूचना के अधिकार (RTI) आवेदनों और प्रथम अपीलों को ई-फाइल करने के लिए Online Portal स्थापित करने की व्यवस्था की मांग करने वाली याचिका पर यह निर्देश पारित किया।

पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने न्यायालय के संबंध में RTI आवेदन दाखिल करने के लिए अपना ऑनलाइन पोर्टल लॉन्च किया, लेकिन कई हाईकोर्ट ने अभी तक Online RTI Portals स्थापित नहीं किया।

आदेश सुनाते हुए सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी की-

“RTI, 2005 की धारा 6(1) में कहा गया कि जो व्यक्ति अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करना चाहता है, उसे भौतिक रूप से या इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आवेदन करके ऐसा करना होगा। यह प्रावधान दर्शाता है कि RTI आवेदक को इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से आवेदन करने का वैधानिक अधिकार है। हालांकि RTI Act 2005 में आया था, लेकिन 17 साल बाद भी कुछ हाईकोर्ट द्वारा ऑनलाइन वेब पोर्टल चालू नहीं किए जा सके हैं। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट, दिल्ली हाईकोर्ट और उड़ीसा हाईकोर्ट ने वेब पोर्टल स्थापित किए हैं। ऐसे पोर्टल 3 महीने के भीतर सभी हाईकोर्ट में स्थापित किए जाएंगे। हम रजिस्ट्रार जनरल से अनुरोध करते हैं कि वे हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से प्रशासनिक निर्देश लें। NIC सभी रसद और तकनीकी सहायता प्रदान करेगा। याचिका का निपटारा किया जाता है।”

केस टाइटल: अनुज नाकाडे बनाम डॉ. पूनम मालकोंडायाह आंध्र प्रदेश सरकार और अन्य। डायरी नं. 36812-2024

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