इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पुलिस महानिदेशक को निर्देश दिया कि वे जांच अधिकारियों को दहेज हत्या से संबंधित मामलों में “व्यापक जांच” करने और विवाहित महिला की मृत्यु (उसकी शादी के 7 साल के भीतर) की हर संभव कोण से जांच करने का निर्देश दें।
“मामले के जांच अधिकारी को व्यापक जांच करनी चाहिए और जांच के दौरान सामग्री एकत्र करनी चाहिए ताकि धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत अपनी रिपोर्ट को उचित ठहराया जा सके कि क्या महिला की ऐसी अप्राकृतिक मौत धारा 302 आईपीसी के दायरे में आती है या यह स्पष्ट रूप से दहेज हत्या है, जो धारा 304बी आईपीसी के तहत दंडनीय है या यह आत्महत्या का मामला है जो धारा 306 आईपीसी के तहत दंडनीय है, जहां महिला की मौत उसके पति या ससुराल वालों द्वारा किसी तरह के उकसावे के कारण हुई।”
इस संबंध में न्यायालय ने जसविंदर सैनी बनाम राज्य (दिल्ली सरकार) के मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2013 के फैसले का भी हवाला दिया, जिससे इस बात पर जोर दिया जा सके कि जांच एजेंसी को केवल एफआईआर से निर्देशित नहीं होना चाहिए, बल्कि उन्हें महिला की हत्या के मामले की हर संभव कोण से जांच करनी चाहिए। उसके बाद धारा 173(2) सीआरपीसी के तहत अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी चाहिए।
अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में धारा 302 आईपीसी के तहत आरोप मुख्य आरोप होगा, न कि वैकल्पिक आरोप, जैसा कि राज्य में ट्रायल कोर्ट ने दहेज हत्या का आरोप तय करते समय गलत तरीके से मान लिया था।
“यदि अभियुक्त के खिलाफ हत्या का मुख्य आरोप ट्रायल में साबित नहीं होता है तो अदालत केवल यह निर्धारित करने के लिए साक्ष्य पर गौर करेगी कि क्या आईपीसी की धारा 304बी के तहत दहेज हत्या का वैकल्पिक आरोप स्थापित होता है या नहीं।”
केस टाइटल- राममिलन बुनकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य और संबंधित अपील 2024 लाइव लॉ (एबी) 413