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पुलिस द्वारा जब्त किए गए वाहनों को पुलिस थानों में तब तक खुले आसमान के नीचे नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक कि जांच के लिए ऐसा करना आवश्यक न हो: झारखंड हाइकोर्ट

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झारखंड हाइकोर्ट ने दोहराया है कि पुलिस मामलों के संबंध में जब्त किए गए वाहनों को पुलिस थानों में तब तक खुले आसमान के नीचे नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक कि जांच के लिए उनकी उपस्थिति आवश्यक न हो।

जस्टिस अनिल कुमार चौधरी ने मामले की सुनावई करते हुए जब्त मोटरसाइकिल से संबंधित याचिका संबोधित करते हुए इस सिद्धांत पर जोर दिया।

जस्टिस चौधरी ने कहा,

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“बार में प्रस्तुत किए गए तर्कों को सुनने और रिकॉर्ड में मौजूद सामग्रियों को देखने के बाद यहां यह उल्लेख करना उचित है कि यह कानून का एक स्थापित सिद्धांत है कि पुलिस मामलों के संबंध में जब्त किए गए वाहनों को पुलिस थानों में तब तक खुले आसमान के नीचे नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक कि मामले की जांच या अन्य के दौरान उनकी मौजूदगी आवश्यक न हो।”

यह मामला पुलिस द्वारा डोडा परिवहन के लिए जब्त किए गए वाहन से संबंधित था, जिसके कारण याचिकाकर्ता ने इसे छोड़ने के लिए याचिका दायर की, जिसे शुरू में खारिज कर दिया गया था। इस निर्णय से व्यथित होकर याचिकाकर्ता ने सेशन जज द्वारा पारित आदेश रद्द करने के लिए धारा 482 सीआरपीसी के तहत आपराधिक विविध याचिका दायर की।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि जब्त वाहन का मूल्य दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है, क्योंकि यह पुलिस स्टेशन परिसर में बिना देखभाल के पड़ा हुआ है। याचिकाकर्ता ने क्षतिपूर्ति बांड प्रस्तुत करने की इच्छा भी व्यक्त की और अदालत या पुलिस द्वारा मांगे जाने पर मोटरसाइकिल पेश करने का वचन दिया।

सुंदरभाई अंबालाल देसाई बनाम गुजरात राज्य में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर भरोसा किया गया, जिसमें कहा गया कि वाहनों को अनावश्यक रूप से लंबे समय तक पुलिस स्टेशन परिसर में नहीं रखा जाना चाहिए।

हाइकोर्ट ने पाया कि मामले की सुनवाई लंबे समय से चल रही है, लेकिन इसका कोई निष्कर्ष नहीं निकला है, जिसके परिणामस्वरूप वाहन का मूल्य दिन-प्रतिदिन कम होता जा रहा है।

न्यायालय ने कहा,

“इस मामले की सुनवाई लंबे समय से चल रही है और निकट भविष्य में इसके समाप्त होने की कोई संभावना नहीं है तथा वाहन पुलिस स्टेशन परिसर में खुले आसमान के नीचे पड़ा हुआ है, जिससे दिन-प्रतिदिन इसकी कीमत घटती जा रही है। ऐसी परिस्थितियों में न्यायालय का यह सुविचारित मत है कि सेशन जज-सह-स्पेशल जज (NDPS मामले), चतरा ने विचाराधीन वाहन को छोड़ने की प्रार्थना अस्वीकार करके घोर अवैधानिकता की है।”

परिणामस्वरूप, सेशन जज-सह-स्पेशल जज चतरा द्वारा पारित आदेश, जिसमें जब्त वाहन को छोड़ने से इनकार किया गया, उसको रद्द कर दिया गया।

न्यायालय ने विशिष्ट शर्तों के तहत मोटरसाइकिल छोड़ने का निर्देश दिया।

याचिकाकर्ता को 1,00,000/- रुपये का क्षतिपूर्ति बांड तथा समान राशि की दो सॉल्वेंट जमानतें प्रस्तुत करनी होंगी तथा न्यायालय या पुलिस द्वारा मांगे जाने पर वाहन को प्रस्तुत करने का वचन देना होगा।

याचिकाकर्ता मामले के लंबित रहने के दौरान वाहन को न तो बेचेगा, न गिरवी रखेगा, न ही उसका स्वामित्व ट्रांसफर करेगा और न ही किसी और को उसे चलाने देगा।

याचिकाकर्ता मामले के लंबित रहने के दौरान वाहन की पहचान में कोई बदलाव या छेड़छाड़ नहीं करेगा।

ट्रायल कोर्ट द्वारा लगाई गई कोई भी अतिरिक्त शर्तें।

इसके अनुसार आपराधिक विविध याचिका को स्वीकार किया गया।

केस टाइटल- अनीता देवी बनाम झारखंड राज्य

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