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वैवाहिक घर ईंटों और पत्थरों से नहीं बल्कि पति-पत्नी के बीच प्यार, सम्मान और देखभाल से बनाया जा सकता है: छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट

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छत्तीसगढ़ हाइकोर्ट ने हाल ही में कहा कि वैवाहिक घर केवल ईंटों और पत्थरों से नहीं बनाया जा सकता बल्कि पति-पत्नी के बीच आदान-प्रदान किए जाने वाले प्यार सम्मान और देखभाल के तत्व ही ऐसे घर की नींव रखते हैं।

जस्टिस गौतम भादुड़ी और जस्टिस राधाकिशन अग्रवाल की पीठ ने सरोजलता रजक द्वारा दायर की गई पहली अपील खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। सरोजलता ने मई 2023 में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित निर्णय और डिक्री को चुनौती दी थी, जिसमें हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13(1)(i-a) और 13(1)(i-b)] क्रूरता और परित्याग के आधार पर अपने पति से तलाक की मांग करने वाली उनकी अर्जी को खारिज कर दिया गया।

मामला

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न्यायालय के समक्ष उनका मामला यह था कि उनकी शादी मई 2014 में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार हुई और शादी के बाद वह अपने प्रतिवादी-पति के साथ रहने लगीं। हालांकि, शादी के 7 दिन बाद उनके पति ने उन्हें गंदी भाषा में गालियां दीं और छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा किया।

यह भी दलील दी गई कि प्रतिवादी ने अपर्याप्त दहेज लाने के कारण उनके साथ क्रूरता से पेश आया। उसने विशेष रूप से आरोप लगाया कि उसके पति ने पिछले 10-12 वर्षों से महिला के साथ अवैध संबंध बनाए हुए, जिसके कारण वह उसके साथ मारपीट करने लगा, गंदी भाषा में गाली-गलौज करने लगा और यहां तक ​​कि उसे जान से मारने की धमकी भी देता था।

उसने कहा कि प्रतिवादी के अभद्र व्यवहार ने उसे जुलाई 2015 से उसे छोड़ने और अलग रहने के लिए मजबूर किया। इसके बाद उसने अपने वकील के माध्यम से मार्च 2019 में अपने पति को कानूनी नोटिस भेजा, जिसमें आरोप लगाया गया कि प्रतिवादी जुलाई 2015 से उसे वापस लेने नहीं आया।

जुलाई 2015 से उनके बीच कोई शारिरिक संबंध नहीं हुआ, इसलिए उसने क्रूरता और परित्याग के आधार पर तलाक की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया।

दूसरी ओर उसके पति ने एक लिखित बयान दायर करके सिविल मुकदमे का विरोध किया, जिसमें उसने अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों से इनकार किया।

उसने विशेष रूप से दलील दी कि वह हमेशा अपने वैवाहिक कर्तव्यों का निर्वहन कर रहा था। इसके विपरीत, अपीलकर्ता/पत्नी ने वैवाहिक घर छोड़ दिया और जब भी वह उसे वापस लाने के लिए अपीलकर्ता के पास गया तो किसी न किसी बहाने से उसके साथ आने और रहने से बचती रही।

यहां तक ​​कि उसके रिश्तेदारों ने भी उसे वापस लाने की कोशिश की। फिर भी उनके सभी प्रयास व्यर्थ गए, जिसके कारण उसे फैमिली कोर्ट, जिला कटनी (एमपी) के समक्ष अधिनियम 1955 की धारा 9 के तहत वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए मुकदमा दायर करना पड़ा, जिसमें अपीलकर्ता उपस्थित हुआ।

प्रतिवादी के साथ रहने से बचने के लिए अपीलकर्ता ने तलाक की डिक्री की मांग करते हुए सिविल मुकदमा दायर किया।

अपने लिखित बयान में पति ने स्पष्ट रूप से किसी अन्य महिला के साथ अवैध संबंध होने से इनकार किया। अंत में उसने दावा किया कि वह अभी भी अपीलकर्ता को रखने और उसके साथ विवाहित जीवन जीने के लिए तैयार है।

हाइकोर्ट की टिप्पणियां

पक्षकारों के वकीलों को सुनने उनके प्रतिद्वंद्वी प्रस्तुतियों पर विचार करने और रिकॉर्ड को ध्यान से देखने के बाद न्यायालय ने शुरू में ही नोट किया कि अपीलकर्ता-पत्नी ने बिना किसी कारण के अपने वैवाहिक घर को छोड़ दिया।

जवाब में प्रतिवादी/पति ने उसे अपने साथ रहने के लिए वापस लाने की कोशिश की, जिसमें वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए कटनी के फैमिली कोर्ट में आवेदन दायर करना भी शामिल था।

अपने अवलोकन में हाइकोर्ट ने चिरकालिक कहावत को प्रतिबिंबित किया,

“एक घर ईंटों और पत्थरों से बनता हैलेकिन एक घर प्यार और स्नेह से बनता है।”

इस भावना को दोहराते हुए न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि वैवाहिक घर भौतिक निर्माण सामग्री से परे है, क्योंकि यह पति-पत्नी के बीच प्यार, स्नेह, सम्मान देखभाल आदि से बनता है।

इसके अलावा अपीलकर्ता की दलीलों और बयान की जांच करते हुए न्यायालय ने अनुमान लगाया कि अपीलकर्ता/पत्नी ने हमेशा बहाने या किसी अन्य बहाने से प्रतिवादी की संगति से परहेज किया।

न्यायालय ने यह भी नोट किया कि किसी अन्य महिला के साथ उसके अवैध संबंधों कई मौकों पर उसके साथ छेड़छाड़ करने और दहेज की मांग के संबंध में उसके आरोप निराधार आरोप थे, क्योंकि प्रतिवादी के रवैये और तरीके को दिखाने के लिए कोई सबूत और सामग्री रिकॉर्ड पर नहीं रखी गई, इसलिए न्यायालय ने माना वे आरोप क्रूरता के बराबर नहीं होंगे।

परिणामस्वरूप, रिकॉर्ड पर उपलब्ध साक्ष्य और सामग्री पर विचार करते हुए न्यायालय ने निष्कर्ष निकाला कि पत्नी-अपीलकर्ता, 1955 के अधिनियम की धारा 13(1)(i-a) और 13(1)(i-b) के तहत क्रूरता और परित्याग के संबंध में प्रतिवादी/पति के खिलाफ अपना मामला साबित करने में असमर्थ रही है।

इसके मद्देनजर न्यायालय ने फैमिली कोर्ट द्वारा दर्ज निष्कर्षों को बरकरार रखा और पत्नी की पहली अपील खारिज कर दी।

केस टाइटल – सरोजलता रजक बनाम विकास कुमार रजक

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