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सुप्रीम कोर्ट के केजरीवाल आदेश पर भरोसा: हाईकोर्ट ने पंजाब के पूर्व मंत्री को लोकसभा चुनाव में प्रचार के लिए PMLA के तहत अंतरिम जमानत दी

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आगामी लोकसभा चुनावों के लिए प्रचार करने के लिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को अंतरिम जमानत देने के सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर भरोसा करते हुए पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने पंजाब के पूर्व वन मंत्री साधु सिंह धर्मसोत को अंतरिम जमानत दी है, जिन्हें प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में गिरफ्तार किया था।

जस्टिस विकास बहल ने कहा,

“इस अदालत को याचिकाकर्ता की ओर से इस आशय की दलील पर संदेह नहीं है कि वह पांच बार के पूर्व विधायक होने के नाते कैबिनेट मंत्री का दर्जा रखते हुए अपनी राजनीतिक पार्टी के लिए प्रचार करना चाहते हैं, जिससे वह 1992 से जुड़े हुए हैं। याचिकाकर्ता का यह भी मामला है कि उसने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी किए गए हर समन का जवाब दिया और उक्त परिस्थितियों में कोई भी समन नहीं छोड़ा। इस अदालत की राय है कि प्रतिवादी-ईडी की ओर से यह तर्क उठाया गया। इस आशय की याचिका कि याचिकाकर्ता उसी लाभ का हकदार नहीं है, जो माननीय सुप्रीम कोर्ट ने अरविंद केजरीवाल (सुप्रा) के मामले में दिया, खारिज किए जाने योग्य है और याचिकाकर्ता तथ्यों में और वर्तमान मामले की परिस्थितियों के अनुसार सीमित अवधि के लिए अंतरिम जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए।”

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न्यायालय ने यह भी माना कि ED ने कुछ सामग्री रिकॉर्ड पर रखने के लिए समय मांगा। इसलिए नियमित जमानत देने के लिए मुख्य याचिका को स्थगित करना आवश्यक है।

राज्य के वन विभाग में कथित अनियमितताओं और आय से अधिक संपत्ति को लेकर धर्मसोत पर पीसी अधिनियम की धारा 7, 7ए, 13(1)(ए)(2) और आईपीसी की धारा 120-बी के तहत मामला दर्ज किया गया। इसके बाद प्रवर्तन मामले की सूचना रिपोर्ट (ईसीआईआर) दर्ज की गई, क्योंकि दो एफआईआर में अपराध धन शोधन निवारण अधिनियम, 2002 के तहत अनुसूचित अपराध थे। उन्हें इस साल जनवरी में गिरफ्तार किया गया और ED की हिरासत के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

दलीलें सुनने के बाद अदालत ने कहा कि केजरीवाल के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने ”हाईकोर्ट द्वारा लगाई गई उस शर्त को हटा दिया, जिसमें कहा गया कि अपीलकर्ता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी भी राजनीतिक रैलियों और बैठकों में शामिल नहीं होना चाहिए। यह शर्त नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होगी।”

इसके अलावा, कोर्ट ने कहा,

“इसमें कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता कांग्रेस (आई) पार्टी से पांच बार पूर्व विधायक हैं, जो राष्ट्रीय पार्टी है। वह पंजाब राज्य में कैबिनेट मंत्री भी रह चुके हैं। उन्हें वन, मुद्रण और स्टेशनरी और अनुसूचित जाति और पिछड़े वर्गों के कल्याण विभाग आवंटित किए गए हैं और याचिकाकर्ता 1992 से पंजाब राज्य में सक्रिय राजनीति में हैं।”

कोर्ट ने आगे कहा,

“यह भी विवाद में नहीं है कि 18वीं लोकसभा चुनाव हो रहे हैं और पंजाब राज्य में मतदान की तारीख 01.06.2024 है और गिनती 04.06.2024 को होनी है। ऐसा सुझाव देने के लिए रिकॉर्ड पर कुछ भी नहीं है याचिकाकर्ता समाज के लिए खतरा है।”

जस्टिस बहल ने यह भी कहा कि धर्मसोत सत्तारूढ़ दल से संबंधित नहीं हैं और उनके पास कोई सार्वजनिक पद नहीं है। इस प्रकार, वह किसी भी व्यक्ति को प्रभावित करने या आधिकारिक फाइलों के साथ छेड़छाड़ करने की स्थिति में नहीं हैं।

कोर्ट ने इस संबंध में कहा,

“याचिकाकर्ता का मामला यह है कि उसने प्रवर्तन निदेशालय द्वारा जारी किए गए हर समन का जवाब दिया था और कोई भी समन नहीं छोड़ा था।”

उपरोक्त के आलोक में न्यायालय ने धर्मसोत को 05 जून तक अंतरिम जमानत देते हुए निर्देश दिया कि वह 06 जून को दोपहर 12:00 बजे निम्नलिखित नियमों और शर्तों पर आत्मसमर्पण करेंगे:-

i) याचिकाकर्ता को विशेष न्यायालय/ट्रायल कोर्ट की संतुष्टि के लिए 50,000/- रुपये की राशि के जमानत बांड और इतनी ही राशि की जमानत राशि देनी होगी।

ii) याचिकाकर्ता वर्तमान मामलों में अपनी भूमिका के संबंध में कोई टिप्पणी नहीं करेगा।

iii) याचिकाकर्ता किसी भी गवाह को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं करेगा।

iv) याचिकाकर्ता देश नहीं छोड़ेगा।

मामले को आगे विचार के लिए 01 जुलाई को सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल: साधु सिंह धर्मसोत बनाम प्रवर्तन निदेशालय

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