कॉर्पस याचिका पर सुनवाई करते हुए, जिसमें महिला ने दावा किया था कि उसकी महिला साथी को उसके माता-पिता ने कस्टडी में लिया है, आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट ने महिलाओं के साथ रहने के अधिकार को बरकरार रखते हुए कहा कि बंदी बालिग है और उसका परिवार उसे अपने जीवन के फैसले लेने से नहीं रोक सकता। जस्टिस आर. रघुनंदन राव और जस्टिस महेश्वर कुंचेम की खंडपीठ ने अपने आदेश में कहा, “इस तथ्य को देखते हुए कि बंदी बालिग है और अपने जीवन के बारे में अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है न तो माता-पिता और न ही परिवार के अन्य सदस्य उसे अपने जीवन के संबंध में निर्णय लेने से रोक सकते हैं। इन परिस्थितियों में इस रिट याचिका को अनुमति दी जाती है और बंदी को याचिकाकर्ता के साथ जाने या अपनी इच्छानुसार कोई भी निर्णय लेने की स्वतंत्रता होगी।
याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। कहा कि उसके साथी को उसके परिवार के सदस्यों और कुछ अन्य लोगों द्वारा जबरन ले जाया गया, क्योंकि कथित बंदी ने उसके माता-पिता के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसके साथी को यह तय करने की स्वतंत्रता नहीं दी गई कि वह किसके साथ रहना चाहती है और उसके माता-पिता उसे याचिकाकर्ता के साथ रहने से जबरन रोक रहे हैं। 9 दिसंबर को हाईकोर्ट ने बंदी को पेश करने का निर्देश दिया। जब 17 दिसंबर को मामले की सुनवाई हुई तो हाईकोर्ट ने बंदी से चैंबर में बातचीत करने के बाद अपने आदेश में कहा,
बंदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह याचिकाकर्ता के साथ जाना चाहती है। वह अपने माता-पिता या अपने परिवार के किसी सदस्य के खिलाफ कोई आपराधिक मामला या शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहती है। उसने यह भी स्पष्ट कर दिया कि वह शिकायत पर जोर नहीं देना चाहती है, जिसे उसने 30.09.2024 को विजयवाड़ा के पुलिस आयुक्त के समक्ष दायर किया है।” पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए संबंधित SHO को निर्देश दिया कि वह हिरासत में लिए गए व्यक्ति को सुरक्षित तरीके से याचिकाकर्ता के घर तक ले जाए। अदालत ने कहा, “यह कहने की जरूरत नहीं है कि कस्टडी में लिए गए व्यक्ति के माता-पिता या परिवार के सदस्यों के खिलाफ इस मामले में आज तक किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी।”