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राजस्थान के स्कूलों में शिक्षा के माध्यम के रूप में राजस्थानी भाषा को शामिल करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया

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पिछले सप्ताह (10 जनवरी) सुप्रीम कोर्ट ने स्कूलों में बच्चों को शिक्षा प्रदान करने के लिए राजस्थानी भाषा को भाषा के रूप में शामिल करने की मांग वाली याचिका पर नोटिस जारी किया। याचिकाकर्ताओं ने राजस्थान शिक्षक पात्रता परीक्षा के पाठ्यक्रम में राजस्थानी भाषा को शामिल करने के निर्देश भी मांगे। जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की खंडपीठ ने राजस्थान राज्य, शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव और REET के समन्वयक को चार सप्ताह के भीतर जवाब देने के लिए नोटिस जारी किया।

राजस्थान हाईकोर्ट के उस फैसले के खिलाफ विशेष अनुमति याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ताओं की याचिका को खारिज कर दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि वह शिक्षा के लिए राजस्थानी को एक भाषा के रूप में शामिल करने के लिए रिट जारी नहीं कर सकता, क्योंकि यह एक शैक्षिक नीति का मामला है। हालांकि राजस्थान राजभाषा अधिनियम 1956 के अनुसार राज्य की आधिकारिक भाषा हिंदी है, लेकिन याचिकाकर्ताओं ने बताया कि 2011 की जनगणना के अनुसार लगभग 4.36 करोड़ लोग राजस्थानी बोलते हैं।

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वर्ष 2021 में राज्य शिक्षा बोर्ड ने अधिसूचना जारी की थी, जिसमें कहा गया कि विद्यालयों में शिक्षा का माध्यम हिंदी/अंग्रेजी/संस्कृत/उर्दू/पंजाबी/गुजराती होगा। याचिकाकर्ता राजस्थानी को बाहर रखे जाने से व्यथित हैं। वे संविधान के अनुच्छेद 350ए का हवाला देते हैं, जो राज्य पर भाषाई अल्पसंख्यकों के बच्चों को शिक्षा के प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा के लिए पर्याप्त सुविधाएं प्रदान करने का दायित्व डालता है। यह तर्क दिया जाता है कि अनुच्छेद 350ए के अनुसार ‘राजस्थानी’ भाषी लोग ‘भाषाई अल्पसंख्यक’ हैं।

बच्चों के लिए निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा अधिकार अधिनियम, 2009 की धारा 29(2))(एफ) का भी संदर्भ दिया गया है, जिसमें कहा गया कि “जहां तक ​​संभव हो, शिक्षा का माध्यम बच्चे की मातृभाषा में होगा।” राष्ट्रीय शिक्षा नीति में यह भी कहा गया कि कम से कम ग्रेड-5 तक या अधिमानतः ग्रेड-8 तक बच्चों के लिए शिक्षा का माध्यम जहां भी संभव हो, मातृभाषा/स्थानीय भाषा होगी। याचिकाकर्ताओं ने बताया कि हाईकोर्ट ने मई 2024 में राज्य को आगामी रीट परीक्षा में राजस्थानी को शामिल करने की संभावना तलाशने का निर्देश दिया। हालांकि, रीट के लिए नवंबर 2024 में जारी अधिसूचना में राजस्थानी को शामिल नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं ने जोर देकर कहा कि यह मुद्दा सांस्कृतिक अधिकारों के संरक्षण का भी मामला है। इस बात पर प्रकाश डाला गया कि राजस्थानी भाषा की एक समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत है, जिसे संरक्षण की आवश्यकता है। यह तर्क दिया गया कि ‘मातृभाषा’ के रूप में ‘राजस्थानी’ बोलने वाले बच्चे भेदभाव का शिकार हो रहे हैं, क्योंकि ‘मातृभाषा’ के रूप में बहुत कम बोली जाने वाली भाषाओं को रीट परीक्षा में शामिल किया गया, जबकि ‘राजस्थानी’ की प्रमुख भाषा को रीट परीक्षा में शामिल नहीं किया गया। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि जब अनुच्छेद 350 ए के तहत अपने दायित्वों का निर्वहन करने में राज्य की ओर से विफलता है तो हाईकोर्ट ने राज्य को परमादेश जारी नहीं करके गलती की। याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि जब राजस्थानी भाषी आबादी के साथ भेदभाव का स्पष्ट मामला है तो हाईकोर्ट को हस्तक्षेप करना चाहिए। अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में बच्चे को अपनी पसंद के माध्यम से शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार शामिल होगा। 14 वर्ष की आयु तक (मध्य विद्यालय) शिक्षा का माध्यम सामान्यतः ‘मातृभाषा’ होना चाहिए। यह तर्क दिया गया कि राज्य बच्चे की मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करने के लिए बाध्य है, खासकर जब 14 वर्ष तक शिक्षा प्रदान करना संविधान के अनुच्छेद 21-ए के आधार पर राज्य पर लगाया गया कर्तव्य है। केस टाइटल: पदम मेहता और अन्य बनाम राजस्थान राज्य और अन्य | एसएलपी (सी) नंबर 1090/2025

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