सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (12 जुलाई) को पटना हाईकोर्ट के “अजीबोगरीब” आदेश पर चिंता जताई, जिसमें हत्या के एक मामले में आरोपी को जमानत तो दे दी गई, लेकिन बिना कोई कारण बताए उसे छह महीने बाद ही रिहा करने का निर्देश दिया गया।
“हालांकि, अजीब बात यह है कि हाईकोर्ट ने कहा है कि जमानत देने वाला आदेश 6 महीने बाद लागू होगा। 2 सितंबर को वापसी योग्य नोटिस जारी किया गया। इस बीच हम उन नियमों और शर्तों पर अंतरिम जमानत देते हैं, जिनका उल्लेख विवादित आदेश के पैराग्राफ नौ में किया गया।”
जस्टिस अभय ओक ने विवादित आदेश की असामान्य प्रकृति को संबोधित करते हुए टिप्पणी की,
“यह किस तरह का आदेश है? कुछ अदालतें छह महीने या एक साल के लिए जमानत दे रही हैं। अब यह एक और प्रकार है। माना जाता है कि वह जमानत का हकदार है, लेकिन उसे छह महीने बाद रिहा किया जाना चाहिए।”
पटना हाईकोर्ट ने आदेश की तारीख से छह महीने के लिए जितेन्द्र पासवान को जमानत दे दी, जिसमें 30,000 रुपये का जमानत बांड और दो जमानतदार शामिल हैं। इसने कई शर्तें भी लगाईं, जिनमें नियमित रूप से अदालत में पेश होना, पुलिस स्टेशन में मासिक उपस्थिति और सबूतों के साथ छेड़छाड़ या आगे कोई अपराध करने पर रोक शामिल है।
केस टाइटल- जितेन्द्र पासवान सत्य मित्रा बनाम बिहार राज्य