ठाणे के बदलापुर में स्कूल में दो नाबालिग किंडरगार्टन लड़कियों के कथित यौन उत्पीड़न के संबंध में स्वतः संज्ञान से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए बॉम्बे हाईकोर्ट ने गुरुवार को एफआईआर दर्ज करने में देरी पर चिंता व्यक्त की। कोर्ट ने बदलापुर पुलिस द्वारा की गई प्रारंभिक जांच में कई खामियों की ओर इशारा करते हुए कहा कि उसने अपनी भूमिका उस तरह नहीं निभाई जैसी उसे निभानी चाहिए थी।
“अगर स्कूल सुरक्षित जगह नहीं है तो शिक्षा के अधिकार और अन्य सभी चीजों के बारे में बोलने का क्या फायदा है। यहां तक कि 4 साल की लड़कियों को भी नहीं बख्शा जा रहा है। यह क्या स्थिति है। यह बेहद चौंकाने वाली है।”
जजों ने आगे कहा कि इस मामले की रिपोर्ट की गई थी। लड़कियों ने आगे आकर मामले की शिकायत की थी लेकिन ऐसी कई घटनाएं हैं, जो रिपोर्ट नहीं की गईं। अदालत ने मौखिक रूप से टिप्पणी की कि ऐसी घटना के बारे में बोलने के लिए बहुत साहस की आवश्यकता होती है।
इसके अलावा न्यायाधीशों ने कहा कि बदलापुर पुलिस स्टेशन द्वारा जांच पर बहुत सारे जवाब देने होंगे। खासकर एफआईआर दर्ज करने में देरी और परिवार को एफआईआर दर्ज करने के लिए घंटों इंतजार करवाने पर।
“नाबालिगों के ऐसे मामलों में सबसे पहली बात जो होनी चाहिए, वह यह है कि पुलिस को एफआईआर दर्ज करनी चाहिए थी। इसके बजाय उन्होंने परिवार को घंटों इंतजार करवाया, जिससे जनता ऐसी घटनाओं की रिपोर्ट करने से हतोत्साहित हुई। पुलिस बल को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। निश्चित रूप से पुलिस ने अपनी भूमिका उस तरह से नहीं निभाई जैसी उसे निभानी चाहिए थी। अगर पुलिस संवेदनशील होती तो यह घटना नहीं होती।”
“हम जानना चाहते हैं कि बदलापुर पुलिस ने क्या जांच की। हम केवल दो पीड़ितों के लिए न्याय सुनिश्चित करने में रुचि रखते हैं। लड़कियों की सुरक्षा से किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता।”
जस्टिस चव्हाण ने इस घटना के खिलाफ लोगों के आक्रोश का जिक्र किया और मौखिक रूप से कहा,
“महाराष्ट्र पुलिस का आदर्श वाक्य सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय (सद्रक्षणाय खलनिग्रहणाय) है। इसका मतलब है अच्छे लोगों की रक्षा करना और दुष्टों पर लगाम लगाना। कृपया इसे याद रखें।”
सुनवाई के दौरान राज्य की ओर से पेश हुए एडवोकेट जनरल सराफ ने कहा कि एफआईआर दर्ज की गई थी और राज्य द्वारा विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया गया।
उन्होंने खंडपीठ को आश्वासन दिया,
सुनवाई के दौरान जजों ने पाया कि पुलिस दूसरी पीड़िता और उसके परिवार के बयान दर्ज करने में विफल रही। उन्होंने आगे कहा कि पीड़ितों और उनके परिवारों द्वारा स्कूल अधिकारियों से शिकायत करने के बावजूद यौन उत्पीड़न की घटना की रिपोर्ट पुलिस को न देने के लिए स्कूल के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है।
इस स्तर पर जस्टिस मोहिते-डेरे ने कहा,
“लेकिन यह पहले ही किया जाना चाहिए था। जिस क्षण परिवार द्वारा एफआईआर दर्ज की गई, आपको स्कूल अधिकारियों के खिलाफ मामला दर्ज करना चाहिए था। क्या लड़कियों की काउंसलिंग की जा रही है? हम पीड़ित लड़कियों के साथ जो हुआ है, उसे नजरअंदाज नहीं कर सकते। हम जानना चाहते हैं कि राज्य ने पीड़ित लड़कियों की काउंसलिंग के लिए क्या किया।”
खंडपीठ ने अपने आदेश में दर्ज किया,
“न केवल एफआईआर दर्ज करने में देरी हुई है, बल्कि स्कूल अधिकारियों ने भी शिकायत दर्ज नहीं की है। यह एफआईआर कॉपी से स्पष्ट है। मिस्टर एजी ने कहा कि SIT का गठन किया गया। उन्होंने कहा कि सभी कागजात SIT को सौंप दिए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि केवल पीड़ित का बयान दर्ज किया गया। दूसरे का बयान दिन के दौरान दर्ज किया जाएगा। हमें यह देखकर आश्चर्य हुआ कि बदलापुर पुलिस ने दूसरे पीड़ित के परिवार के बयान दर्ज नहीं किए। हमारे द्वारा स्वतः संज्ञान लेने के बाद ही पुलिस ने दूसरे पीड़ित के पिता के बयान दर्ज किए, वह भी आधी रात के बाद। हमें उम्मीद है कि पीड़ितों और उनके परिवारों को सभी कानूनी मदद और परामर्श प्रदान किया जाएगा।”