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क्या घरेलू हिंसा की शिकायत Limitation के कारण खारिज की जा सकती है?

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सुप्रीम कोर्ट ने Kamatchi बनाम Lakshmi Narayanan (2022) मामले में एक अहम सवाल का जवाब दिया कि क्या घरेलू हिंसा कानून (Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत दायर शिकायत Section 468 CrPC (Code of Criminal Procedure – आपराधिक प्रक्रिया संहिता) में तय Limitation (समय सीमा) के आधार पर खारिज की जा सकती है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस तरह की शिकायतों पर Limitation का नियम लागू नहीं होता, और इस निर्णय ने महिलाओं के अधिकारों को और मजबूत किया है।
घरेलू हिंसा कानून की धारा 12 का उद्देश्य (Purpose of Section 12 of the DV Act) DV Act की Section 12 महिलाओं को यह अधिकार देती है कि वे Magistrate (न्यायिक मजिस्ट्रेट) के सामने आवेदन देकर राहत मांग सकें। इन राहतों में Protection Order (सुरक्षा आदेश), Residence Order (रहने का अधिकार), Monetary Relief (आर्थिक सहायता), Custody (संरक्षण) और Compensation (मुआवजा) शामिल हैं। यह धारा किसी अपराध की रिपोर्ट नहीं है, बल्कि पीड़ित महिला को Civil Relief (दीवानी राहत) दिलाने की प्रक्रिया है।
धारा 12 और धारा 31 में अंतर (Difference between Section 12 and Section 31) सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि Section 12 में आवेदन देना और Section 31 के तहत अपराध करना – ये दोनों अलग चीज़ें हैं। Section 31 तब लागू होता है जब कोई व्यक्ति Magistrate के आदेश का उल्लंघन करता है। यानी, केवल आवेदन देने से अपराध नहीं बनता, अपराध तब बनता है जब Court द्वारा दिए गए आदेश का पालन नहीं किया जाता। इसलिए Limitation का सवाल भी केवल उल्लंघन (Violation) की स्थिति में उठता है।
CrPC की धारा 468 का आवेदन नहीं (Inapplicability of Section 468 CrPC) Section 468 CrPC केवल उन मामलों में Limitation तय करता है जिनमें कोई संज्ञेय अपराध (Cognizable Offence) हुआ हो। लेकिन Domestic Violence Act की धारा 12 के तहत दी गई याचिका (Application) कोई अपराध दर्ज कराने वाली शिकायत नहीं है। यह सिर्फ एक प्रक्रिया है जिसमें महिला अपने अधिकारों के लिए Court से मदद मांगती है। Supreme Court ने साफ किया कि Section 468 CrPC ऐसे मामलों पर लागू नहीं होती। जब तक Magistrate कोई आदेश पारित नहीं करता और उसका उल्लंघन नहीं होता, तब तक कोई Offence (अपराध) बनता ही नहीं। इसलिए Limitation की गिनती शुरू ही नहीं होती। पहले के महत्वपूर्ण निर्णयों से समर्थन (Support from Earlier Judgements) Supreme Court ने इस निर्णय में Sarah Mathew बनाम Institute of Cardio Vascular Diseases (2014) का उल्लेख किया, जिसमें कहा गया था कि Limitation की गणना शिकायत दर्ज करने की तारीख से होती है, न कि Magistrate द्वारा Cognizance (ज्ञान) लेने की तारीख से। इस फैसले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि Complainant (शिकायतकर्ता) को Procedural Delay (प्रक्रियात्मक देरी) के कारण नुकसान न हो। Kamatchi मामले में Court ने यह भी कहा कि Section 12 के तहत कोई Offence बनता ही नहीं है, इसलिए Sarah Mathew वाला सिद्धांत यहां पूरी तरह लागू भी नहीं होता। अपराध की शिकायत से तुलना गलत (Section 12 is not Criminal Complaint) Court ने यह भी साफ किया कि Section 12 के तहत दायर याचिका को Criminal Complaint (आपराधिक शिकायत) मानना गलत होगा। जब Respondent (प्रतिवादी) को नोटिस भेजा जाता है, तो यह सिर्फ उसका जवाब पाने के लिए होता है ताकि Magistrate राहत देने पर फैसला कर सके। यह प्रक्रिया Criminal Prosecution (आपराधिक अभियोजन) की शुरुआत नहीं होती। Court ने यह भी कहा कि Adalat Prasad बनाम Rooplal Jindal (2004) का जो निर्णय Summon (समन) जारी करने और उसकी Quashing (रद्द करने) से जुड़ा है, वह DV Act की कार्यवाही पर लागू नहीं होता क्योंकि दोनों प्रक्रियाएं मूल रूप से अलग हैं। संवैधानिक और मौलिक दृष्टिकोण (Constitutional and Fundamental Considerations) Kamatchi का यह फैसला बताता है कि Domestic Violence Act एक Welfare Legislation (कल्याणकारी कानून) है, जो महिलाओं को घरेलू हिंसा से सुरक्षा देने के लिए बनाया गया है। यह कानून भारत की अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों, जैसे कि CEDAW (Convention on the Elimination of All Forms of Discrimination Against Women) को पूरा करने के लिए भी लाया गया है। अगर Section 12 पर Limitation लागू किया जाए, तो यह पूरे कानून के उद्देश्य को विफल कर देगा। इस कानून का मकसद है – पीड़ित महिलाओं को तेज, सरल और असरदार राहत देना, न कि उन्हें Procedural Barriers (प्रक्रियात्मक अड़चनों) में फँसाना। फैसले का असर (Consequences of the Judgment) इस निर्णय के बाद अब यह पूरी तरह स्पष्ट हो गया है कि Section 12 के तहत दायर Complaint को Section 468 CrPC के Limitation के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता। इससे उन महिलाओं को राहत मिली है जो किसी कारणवश समय पर शिकायत नहीं कर सकीं, लेकिन फिर भी न्याय की हकदार हैं। यह फैसला देश भर में एक समान व्याख्या का मार्ग प्रशस्त करता है और यह सुनिश्चित करता है कि महिलाओं के लिए बना कानून Procedural Technicalities (तकनीकी प्रक्रियाओं) के कारण कमजोर न हो जाए। सुप्रीम कोर्ट का Kamatchi बनाम Lakshmi Narayanan में दिया गया निर्णय Domestic Violence Act के तहत महिलाओं को मिले अधिकारों की सुरक्षा करता है। Court ने यह स्पष्ट किया कि Section 12 के तहत दायर याचिका कोई Criminal Complaint नहीं है, इसलिए उस पर CrPC की Limitation लागू नहीं होती। इस फैसले ने न्याय की भावना को प्राथमिकता दी है और महिलाओं को एक सशक्त विधिक सहारा प्रदान किया है। यदि कोई महिला घरेलू हिंसा की शिकार हुई है, तो वह समय बीत जाने के बावजूद राहत की मांग कर सकती है – यह इस फैसले की सबसे बड़ी उपलब्धि है। Court का यह निर्णय न सिर्फ कानून की सही व्याख्या करता है, बल्कि न्याय के वास्तविक उद्देश्य को भी मजबूत करता है।

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