भारतीय कानून के तहत बच्चों का संरक्षण (Protection of Children)
भारत में कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों (Children in Conflict with Law) के मामलों को निपटाने के लिए एक विशेष कानून है, जिसका नाम जुवेनाइल जस्टिस (बाल संरक्षण और देखभाल) अधिनियम, 2015 (Juvenile Justice Act) है।
यह अधिनियम बच्चों की सुरक्षा, देखभाल, और संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए बनाया गया है, खासकर उन बच्चों के लिए जो किसी अपराध में संलिप्त होने के आरोपी होते हैं। इस अधिनियम का एक महत्वपूर्ण प्रावधान यह है कि किसी भी परिस्थिति में कानून से उलझे बच्चे को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता।
जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम के प्रावधान (Provisions): बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा
जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम की धारा 10 (Section 10) स्पष्ट रूप से कहती है कि जब किसी बच्चे को पुलिस द्वारा अपराध में संलिप्त होने के आरोप में पकड़ा जाता है, तो उसे विशेष जुवेनाइल पुलिस यूनिट (Juvenile Police Unit) या एक निर्दिष्ट बाल कल्याण अधिकारी (Child Welfare Officer) के संरक्षण में रखा जाना चाहिए।
कानून के अनुसार, बच्चे को 24 घंटे के भीतर जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJB) के समक्ष पेश किया जाना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस कानून के तहत किसी भी बच्चे को पुलिस लॉकअप या जेल में नहीं रखा जा सकता।
धारा 12 (Section 12) के तहत और अधिक सुरक्षा प्रदान की गई है, जिसमें जमानत (Bail) का प्रावधान है। यह धारा कहती है कि किसी भी बच्चे को, जो अपराध का आरोपी है, जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए, चाहे वह बांड के साथ हो या बिना बांड के, या उसे किसी प्रोबेशन अधिकारी (Probation Officer) या किसी उपयुक्त व्यक्ति (Fit Person) के संरक्षण में रखा जाना चाहिए।
इसका एकमात्र अपवाद यह है कि यदि बच्चे की रिहाई से उसे शारीरिक, नैतिक या मानसिक खतरे (Physical, Moral, or Psychological Danger) में डालने की संभावना हो, या यदि यह न्याय के उद्देश्यों (Ends of Justice) को प्रभावित करती हो। फिर भी, ऐसे मामलों में बच्चे को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जा सकता, बल्कि उसे एक ऑब्जर्वेशन होम (Observation Home) या किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर रखा जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: लॉकअप या जेल में बच्चों के लिए कोई जगह नहीं
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने इन प्रावधानों को अपने फैसलों के माध्यम से और भी मजबूत किया है। तमिलनाडु में अनाथालयों में बच्चों के शोषण के मामले पर सुनवाई के दौरान, कोर्ट ने उन मामलों पर गंभीरता से ध्यान दिया जहां बच्चों को पुलिस हिरासत में रखा जा रहा था।
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम के प्रावधानों का पालन होना चाहिए, और किसी भी परिस्थिति में बच्चों को जेल या पुलिस लॉकअप में नहीं रखा जाना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा कि जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड का यह कर्तव्य है कि वे इन प्रावधानों के उल्लंघन (Violation) को रोकने के लिए सक्रिय रहें। बोर्ड को सिर्फ मूक दर्शक बनकर नहीं रहना चाहिए, बल्कि जब भी उन्हें पता चले कि किसी बच्चे को गलत तरीके से पुलिस लॉकअप या जेल में रखा गया है, उन्हें तुरंत हस्तक्षेप (Intervene) करना चाहिए।
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड (JJBs) कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि JJBs का दायित्व (Responsibility) है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी बच्चे को गलत या अनुचित (Inappropriate) वातावरण में न रखा जाए। बोर्डों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अधिनियम के तहत दिए गए संरक्षणों का पूर्ण पालन हो।
अपने फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया कि देश के सभी जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड्स को सतर्क और सक्रिय रहना चाहिए। अगर कोई बच्चा पुलिस लॉकअप या जेल में पाया जाता है, तो JJBs को तुरंत उस बच्चे को जमानत पर रिहा करने या उसे एक सुरक्षित और उचित स्थान पर भेजने का आदेश देना चाहिए।
कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि यह आदेश सभी उच्च न्यायालयों (High Courts) को भेजा जाए, ताकि उनके अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आने वाले जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड्स को इस आदेश की जानकारी हो और वे इसका पालन करें।
बच्चों की गरिमा और अधिकारों की रक्षा
कानून का उल्लंघन करने वाले बच्चों की सुरक्षा जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम का एक बुनियादी पहलू है। सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने इन सुरक्षा उपायों को और अधिक मजबूत किया है, यह स्पष्ट करते हुए कि किसी भी बच्चे को जेल या पुलिस लॉकअप की कठोर और हानिकारक परिस्थितियों (Harsh and Damaging Conditions) में नहीं रखा जाना चाहिए।
जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड्स के माध्यम से, कानूनी प्रणाली (Legal System) को बच्चों की गरिमा और अधिकारों को बनाए रखने के लिए काम करना चाहिए, यह सुनिश्चित करते हुए कि वे कानून के तहत मिलने वाली देखभाल और सुरक्षा प्राप्त करें। इन सिद्धांतों का पालन करके, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है कि उसके सबसे कमजोर नागरिकों के साथ सहानुभूति (Compassion) और न्याय के साथ व्यवहार किया जाए।