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किरायेदारी समाप्त होने के बाद भी कब्जे में बने रहने वाले किरायेदार को ‘अंतरकालीन लाभ’ देकर मकान मालिक को मुआवजा देना होगा : सुप्रीम कोर्ट

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि किरायेदारी अधिकार समाप्त होने के बाद भी किराएदार किराए के परिसर में बना रहता है तो मकान मालिक किरायेदार से ‘अंतरकालीन लाभ’ के रूप में मुआवजा पाने का हकदार होगा।

जस्टिस जेके माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की पीठ ने कहा,

“जबकि उपर्युक्त स्थिति आमतौर पर स्वीकार की जाती है, यह कानून के दायरे में भी है कि किरायेदार, जो एक बार वैध रूप से संपत्ति में प्रवेश कर गया, अपने अधिकार समाप्त होने के बाद भी कब्जे में बना रहता है, वह कब्जे के अधिकार समाप्त होने के बाद उस अवधि के लिए मकान मालिक को मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है।”

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सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल आया कि क्या किरायेदार मकान मालिक को ‘अंतरकालीन लाभ’ के रूप में मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी होगा, जब किरायेदार के खिलाफ कोई बेदखली आदेश नहीं था, लेकिन वह किराए के परिसर में बना हुआ है।

सकारात्मक उत्तर देते हुए जस्टिस संजय करोल द्वारा लिखित निर्णय में कहा गया कि किरायेदार को उस अवधि के लिए मकान मालिक को मध्यवर्ती लाभ का भुगतान करना होगा, जब तक वह ‘सहनशील किरायेदार’ रहा हो।

“सहनशील किरायेदार” वह किरायेदार होता है, जो वैध स्वामित्व के द्वारा भूमि पर प्रवेश करता है, लेकिन स्वामित्व समाप्त होने के बाद भी उस पर कब्जा बनाए रखता है।

न्यायालय के अवलोकन को इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड बनाम सुडेरा रियल्टी प्राइवेट लिमिटेड, 2022 लाइवलॉ (एससी) 744 के अपने निर्णय से समर्थन मिला, जहां यह भी देखा गया कि पट्टे की समाप्ति के बाद भी कब्जे में बने रहने के दौरान किरायेदार मध्यवर्ती लाभ का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हो जाता है।

अदालत ने टिप्पणी की,

“हमारे विचार में ‘निर्धारण’, ‘समाप्ति’, ‘जब्ती’ और ‘समाप्ति’ शब्दों का प्रभाव, लागू तथ्यों के अधीन, समान होगा, अर्थात, जब इन तीनों शब्दों में से किसी को भी पट्टे पर लागू किया जाता है तो पट्टेदार/किराएदार के अधिकार समाप्त हो जाते हैं या कुछ मामलों में उनके पूर्व स्वरूप के कमज़ोर पुनरावृत्ति में बदल जाते हैं। इसलिए इनमें से किसी भी स्थिति में मध्यवर्ती लाभ देय होगा।”

अदालत ने निष्कर्ष निकाला,

“हम प्रथम दृष्टया यह राय दर्ज कर सकते हैं कि प्रतिवादी-किराएदार ने अभी तक अप्रमाणित कारणों से याचिकाकर्ता-आवेदक मकान मालिक को देय किराए और/या अन्य बकाया राशि के भुगतान में देरी की है। संपत्ति से मिलने वाले मौद्रिक लाभों से इनकार करना, जब रिकॉर्ड का हिस्सा बनने वाली निर्विवाद बाजार रिपोर्ट के संदर्भ में देखा जाता है तो निस्संदेह पर्याप्त है। इस तरह उचित अपवादों के अधीन हम याचिकाकर्ता-आवेदक द्वारा दावा की गई राशि जमा करने के लिए यह आदेश पारित करते हैं, जिससे पक्षों के बीच पूर्ण न्याय सुनिश्चित हो सके।”

केस टाइटल: बिजय कुमार मनीष कुमार एचयूएफ बनाम अश्विन भानुलाल देसाई

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