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कंज्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट के तहत कौन होता है ग्राहक?

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कन्ज़्यूमर प्रोटेक्शन एक्ट ग्राहकों के अधिकारों को सुरक्षित करने हेतु बनाया गया है। ग्राहकों को एक अलग मंच दिया गया है जहां वह अपने साथ होने वाले किसी भी अन्याय के विरुद्ध वाद ला सकते हैं। इस एक्ट में सबसे महत्वपूर्ण विषय यह है कि ग्राहक किसे माना जाएगा अर्थात वह व्यक्ति जो इस कानून के दायरे में रिलीफ मांग सकता है वह कौन है।

उपभोक्ता अधिनियम की धारा 2 (घ) में परिभाषा खंड के भीतर उपभोक्ता की विस्तृत परिभाषा दी गयी है जिस परिभाषा के अनुसार-

जो किसी प्रतिफल के बदले कोई वस्तु खरीदता है परंतु उस वस्तु का पुनः विक्रय वाणिज्यिक उद्देश्य से नहीं करता ऐसी परिस्थिति में वस्तु खरीदने वाला व्यक्ति उपभोक्ता कहलाता है’

उपभोक्ता से सीधा सा अर्थ वस्तु या सेवा के उपभोग से लिया जाना चाहिए।

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लेख में परिभाषा को छोटा करके सरल शब्दों में समझाने का प्रयास किया गया है अन्यथा अधिनियम में बतायी गई परिभाषा अधिक विस्तृत और विषाद है परंतु उस परिभाषा का अर्थ यही है।

कोर्ट ने समय-समय पर अपने निर्णय के माध्यम से उपभोक्ता की परिभाषा को और अधिक विस्तृत कर दिया है और अब भविष्य तथा वर्तमान के न्याय निर्णय में यह पूर्व में दिए निर्णय दलील बन रहे हैं।

कुछ महत्वपूर्ण निर्णय निम्नानुसार है-

ग्राहक होने के लिए शर्तें-

कंज़्यूमर यूनिटी एंड ट्रस्ट बनाम स्टेट ऑफ राजस्थान व अन्य 1991 (सीपीआर) स्टेट कमीशन जयपुर के मामले में यह बताया गया है कि उपभोक्ता के रूप में दावा करने के लिए होने वाली अपेक्षित शर्तें निम्न है जिनका किसी क्रयता में पाया जाना चाहिए-

1) उसको सेवा प्रदान की जानी चाहिए।

2) उसके द्वारा सेवा को भाड़े पर लिया जाना चाहिए।

3) सेवा के भाड़े के लिए उसे अधिनियम की धारा 2(1) (डी) (2) के अनुसार प्रतिफल का भुगतान करना चाहिए।

सतीश कुमार बनाम मैसर्स आफ अल्फा ऑटोमोबाइल्स 1992 सीपीजे 202 स्टेट कमीशन हिमाचल प्रदेश के मामले में यह कहा गया है कि माल विक्रय हेतु एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजने वाला उपभोक्ता नहीं है। इस मामले में परिवादी ने एक ट्रक खरीदा था जो ट्रक माल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए प्रयोग किया जाना था। कोर्ट ने इस मामले में परिवादी को उपभोक्ता नहीं माना।

प्रतिफल पर चिकित्सा परिवादी उपभोक्ता है-

मैसर्स कॉस्मोपॉलिटन हॉस्पिटल बनाम बसंत नैयर 1992 (1) सी पी जे 302 नेशनल कमीशन के मामले में परिवादी द्वारा प्रतिफल पर चिकित्सा प्राप्त की गयी थी।परिवादी उपभोक्ता की कोटि में आता है उसके द्वारा अस्पताल के विरुद्ध प्रस्तुत परिवाद प्रचलनशील है।

एक अन्य मामले में परिवादी बीमार था। परिवादी ने प्राइवेट अस्पताल में प्रतिफल देकर चिकित्सा सेवाएं प्राप्त की थी। अस्पताल को परिवादी ने दस हजार रुपए दिए थे। अस्पताल ने सुझाव दिया था की विशेषज्ञ की सेवाएं प्राप्त करना चाहिए। परिवादी ने प्रतिवादी को विशेषज्ञ की सेवाएं प्राप्त करने के लिए शुल्क भुगतान किया था। अस्पताल में शुल्क संबंधित विशेषज्ञ को दे दिया। इन परिस्थिति में परिवादी की उपभोक्ता परिस्थिति पर विचार किया जाना था।

परिवादी अस्पताल व संबंधित विशेषज्ञ दोनों के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत करने की दशा में उपभोक्ता की प्रस्थिति रखने वाला माना गया।

वाहन खरीदने हेतु उधार लेने की स्थिति में उधार लेने वाला उपभोक्ता माना गया है-

सुरेंद्र कुमार अग्रवाल बना टेल्को फाइनेंस लिमिटेड 2006 सीपीजे 68 राज्य आयोग छत्तीसगढ़ इस मामले में तर्क दिया गया था कि परिवादी ने प्रश्नगत वाहन का क्रय कमर्शियल प्रयोजन के लिए किया गया था इसलिए परिवादी की प्रस्थिति अधिनियम के तहत उपभोक्ता के रूप में नहीं थी।

राज्य आयोग द्वारा निर्धारित किया कि हम पाते है कि विवाद प्रश्नगत वाहन क्रय करने में वित्त सेवा प्रदान करने के संबंध में है। परिवादी की प्रस्थिति उपभोक्ता के रूप में मानी गयी। इस संबंध में नेशनल कमीशन के द्वारा निर्णय हरसोलिया मोटर्स विरुद्ध नेशनल इंश्योरेंस कंपनी 2005 एक सी पी जे 27 नेशनल कमीशन पर निर्भरता व्यक्त की गयी। परिवादी के उपभोक्ता नहीं होने संबंधी आपत्ति अमान्य कर दी गयी।

निगम उपभोक्ता नहीं-

पंजाब लैंड डेवलपमेंट बनाम महेंद्र जीत सिंह 2004 (3) 156 सीपीजे यूनियन टेरिटरी आयोग चंडीगढ़ के मामले में निगम ने परिवाद प्रस्तुत किया था। निगम की प्रस्थिति उपभोक्ता कि नहीं मानी गयी। इसका कारण यह बताया गया है कि प्रश्नगत सेवाएं प्राप्त करने वाला निगम सेवाओं को वाणिज्यिक रूप में उपयोग में लाता है इसलिए उसे उपभोक्ता नहीं माना जा सकता।

निशुल्क ऑपरेशन में परिवादी उपभोक्ता नहीं माना गया-

सी व्ही मधुसूदन बनाम डायरेक्टर जयदेव इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियोलॉजी 1992 (2) सीपीजे 519 स्टेट कमीशन पंजाब के मामले में परिवादी से धान के रूप में राशि वसूल की गई परंतु ऑपरेशन शुल्क पेटे कुछ भी वसूल नहीं किया गया। ऐसी दशा में परिवादी उपभोक्ता की कोटि में नहीं आता है।दान पेटे प्रदत राशि को इस संबंध में सेवा के प्रतिफल के रूप में नहीं माना गया।

राव सहिद देवराज बनाम उल्लासनगर नगर पालिका 1993 के एक मामले में परिवादी द्वारा नगर पालिका के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत किया गया। परिवादी यह कह रहा था कि नगरपालिका द्वारा निर्मित शौचालय का उचित रखरखाव नहीं है। राज्य आयोग महाराष्ट्र ने परिवादी की पीड़ा से सहमति व्यक्त की परंतु परिवादी को सहायता प्रदान करने में असमर्थता व्यक्त की क्योंकि परिवादी जो कि कर भुगतान करता था उपभोक्ता नहीं माना गया।

संतोष वर्सेस चीफ जनरल मैनेजर टेलीकम्युनिकेशन के मामले में टेलीफोन विभाग में रजिस्ट्रेशन आवेदन को जयपुर से पूना के एक्सचेंज में अंतरित नहीं किया था। यह कृत्य सेवा में कमी माना गया और प्रतिकार ब्याज सहित मंजूर किया गया।

पी नागभूषण राव बनाम यूनियन बैंक ऑफ़ इंडिया 1991 सीपीआर 197 स्टेट कमिशन हैदराबाद बैंक का ग्राहक अधिनियम में परिभाषित उपभोक्ता की कोटि में आता है। बैंक द्वारा सेवा में कमी होने के आधार पर ग्राहक द्वारा परिवाद प्रस्तुत की जा सकती है। बैंक परिवादी द्वारा जमा राशि पर मात्र 5% ब्याज का भुगतान करती थी जबकि बैंक द्वारा यह राशि अधिक ब्याज दर पर अन्य उधार देने वालों को प्रदान की जाती थी। इसी दशा में परिवादी द्वारा बैंक से सेवा प्रतिफल पर प्राप्त होना माना गया तथा परिवादी उपभोक्ता को उपभोक्ता की कोटि में रखा गया। सेवा की कमी के आधार पर बैंक के विरुद्ध परिवाद प्रस्तुत किया जा सकता है।

चेतन प्रकाश राजपुरोहित बनाम जैन विश्व भारती इंस्टीट्यूट 2006 एक सीपीजे 33 राज्य आयोग राजस्थान के मामले में यह माना गया है कि विद्यार्थी उपभोक्ता की श्रेणी में आते है।

वाहन बुकिंग के समय अग्रिम राशि देने वाला उपभोक्ता है।

उपभोक्ता शब्द में क्रेता के अलावा वस्तु का उपयोगकर्ता भी शामिल-

मैसर्स वाणिज्य भंडार बनाम उमेश चरण 1992 (2) सीपीआर 330 स्टेट कमिशन उड़ीसा। इस मामले में उपभोक्ता से आशय वस्तु के क्रेता से है, परंतु इसका अर्थ यह नहीं है की वस्तु का क्रेता ही उपभोक्ता माना जाएगा तथा उस उस वस्तु को उपयोग करने वाला उपभोक्ता नहीं माना जाएगा।

प्रकरण में वस्तु क्रय करने वाले के अलावा इसका उपयोगकर्ता भी उपभोक्ता माना जाता है यदि वह उस वस्तु को क्रय करने वाले व्यक्ति के अधिकार से या अनुमोदन से वस्तु का उपयोग करता है।

प्रस्तुत प्रकरण में एक व्यक्ति ने सीमेंट खरीदी थी तथा सीमेंट का उपयोग उसके दामाद द्वारा किया गया था। इस प्रकरण में यह माना गया कि सीमेंट खरीदने वाले व्यक्ति का दामाद जिसने उस सीमेंट का उपयोग किया था वह भी उपभोक्ता माना जाएगा। एक अन्य मामले में एक व्यक्ति ने कुछ दवाइयां खरीदी तथा दवाइयां अपनी स्त्री को उपयोग करने हेतु दी वही स्त्री भी उपभोक्ता मानी गयी तथा उसे परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार है।

सभी प्रकरण अंत में इस बात पर लौट कर आते है कि वस्तु को क्रय करना या सेवाओं को क्रय करना या उसके बदले कोई प्रतिफल देना उपभोक्ता होने की पहचान है। वस्तु को खरीदने के बाद पुनः विक्रय उसका वाणिज्य उपयोग करने के आशय से नहीं होना चाहिए या फिर बहुत बड़ी मात्रा में वस्तु को बेचने के आशय से नहीं खरीदा जाना चाहिए जिससे ऐसी खरीदी बेची में कोई लाभ कमाने का लक्ष्य रखा गया हो।

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