पंजाब एंड हरियाणा हाइकोर्ट के जस्टिस संजय वशिष्ठ की सिंगल बेंच ने न्यायाधिकरण का निर्णय बरकरार रखा और अनुच्छेद 226 के तहत अपीलीय क्षेत्राधिकार के सीमित दायरे पर जोर दिया कि तथ्यात्मक विवादों के बजाय कानूनी त्रुटियों को सुधारने पर ध्यान केंद्रित किया तथा निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों की अखंडता को बनाए रखने के महत्व पर प्रकाश डाला।
रिट प्रबंधन द्वारा दायर की गई, क्योंकि वह न्यायाधिकरण के उस निर्णय से व्यथित था, जिसमें कर्मचारी के पक्ष में उसकी बर्खास्तगी को अमान्य ठहराया गया। हाइकोर्ट को न्यायाधिकरण के निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं मिला तथा उसने उसके तथ्यात्मक निष्कर्षों को बरकरार रखा।
कर्मचारी को महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक (प्रबंधन) द्वारा 25.11.1995 को दैनिक वेतन पर माली के रूप में नियुक्त किया गया तथा बिना किसी स्पष्टीकरण के 07.08.1996 को उसकी सेवाएं समाप्त कर दी गईं।
कर्मकार ने औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय, रोहतक (न्यायाधिकरण) को एक संदर्भ दिया।
जवाब में प्रबंधन ने एमडीयू अधिनियम 1975 (MDU Act 1975) के तहत स्वायत्त वैधानिक निकाय के रूप में अपनी स्थिति के लिए तर्क दिया, यह तर्क देते हुए कि यह उद्योग की परिभाषा को पूरा नहीं करता है।
इसने स्पष्ट किया कि मस्टर रोल पर दैनिक मजदूरी पर ‘माली’ के रूप में कामगार की नियुक्ति, उप-विभाग में उपलब्ध कार्य पर निर्भर है बिना किसी नियमित पद के एक अस्थायी व्यवस्था के रूप में है। न्यायाधिकरण ने कामगार के रोजगार की निर्विवाद अवधि स्वीकार की और माना कि उसने 227 दिन काम किया, जिसे 22 आराम दिनों के साथ मिलाकर कुल 240 कार्य दिवस हुए।
हाईकोर्ट न्यायाधिकरण द्वारा प्रस्तुत तर्क से सहमत था तथा हस्तक्षेप के लिए कोई ठोस आधार नहीं पाया। इसके अतिरिक्त, हाईकोर्ट ने सैयद याकूब बनाम के.एस. राधाकृष्णन [1964 (ए.आई.आर.) सुप्रीम कोर्ट [477] में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय का उल्लेख किया तथा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 226 के अंतर्गत अपीलीय क्षेत्राधिकार के सीमित दायरे पर जोर दिया।
इसने माना कि उत्प्रेषण रिट जारी करने में हाइकोर्ट की भूमिका मुख्य रूप से अधिकार क्षेत्र की त्रुटियों या प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों के उल्लंघन को सुधारने पर केंद्रित है, न कि अपीलीय न्यायालय की भूमिका ग्रहण करने पर। इसने माना कि न्यायिक प्रक्रिया की अखंडता को बनाए रखने तथा निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों के विशिष्ट कार्यों का सम्मान करने के लिए यह संयम आवश्यक है।
इसके अलावा रिट याचिका के लंबित रहने के दौरान हाइकोर्ट ने माना कि प्रबंधन द्वारा अन्य कर्मचारियों के साथ-साथ कामगार को नियमित करने की सिफारिश की गई। इसने माना कि यह प्रबंधन के साथ कामगार की सेवा की निरंतरता और विवादित पुरस्कार के कार्यान्वयन को रेखांकित करता है।
हाइकोर्ट ने विवादित अवार्ड को बाधित करने के लिए कोई ठोस आधार नहीं पाया।
केस टाइटल- महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी, रोहतक बनाम पीठासीन अधिकारी, औद्योगिक न्यायाधिकरण-सह-श्रम न्यायालय, रोहतक और अन्य