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उन लोगों के बारे में क्या जिन्होंने इन दवाओं का सेवन किया?’: सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई न करने पर अधिकारियों को फटकार लगाई

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अदालती वादे का उल्लंघन करते हुए लगातार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने को लेकर पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निष्क्रियता के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (SLA) को कड़ी फटकार लगाई।

4 अप्रैल को कोर्ट ने उत्तराखंड प्राधिकरण को नोटिस जारी कर दिव्य फार्मेसी (जो पतंजलि योगपीठ ट्रस्ट से संबंधित है) के विज्ञापनों के खिलाफ की गई कार्रवाई के संबंध में उसका हलफनामा मांगा।

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की खंडपीठ ने पतंजलि आयुर्वेद, इसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण और सह-संस्थापक बाबा रामदेव द्वारा दायर माफी के दूसरे हलफनामे को खारिज करते हुए SLA से सवाल किया कि उसे यह क्यों नहीं सोचना चाहिए कि राज्य प्राधिकरण कथित अवमाननाकर्ताओं के साथ सांठगांठ में था।

आदेश के हिस्से के रूप में जस्टिस कोहली ने निर्देशित किया,

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“[हम] यह जानकर चकित हैं कि फ़ाइल को आगे बढ़ाने के अलावा, राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के भीतर सक्षम अधिकारियों ने कुछ नहीं किया है। भारत संघ और राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के बीच पत्राचार … की ओर से स्पष्ट प्रयास दिखाता है। इस तथ्य के बावजूद कि राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को पहली बार भ्रामक विज्ञापनों के बारे में वर्ष 2018 में सूचित किया गया, राज्य के अधिकारियों ने किसी तरह से मामले में देरी की। इन 4/5 वर्षों के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने गहरी नींद सोते रहे।”

SLA की ओर से पेश सीनियर वकील ध्रुव मेहता ने अदालत को यह समझाने का प्रयास किया कि राज्य के अधिकारी 2019 में बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश के आधार पर कार्य कर रहे थे, जिसके तहत ड्रग्स और कॉस्मेटिक नियम, 1945 के नियम 170 के आवेदन पर रोक लगाई गई। आयुर्वेदिक औषधियों के विज्ञापनों पर रोक लगा दी गई। हालांकि, बेंच ने शुरुआत में ही इस तर्क को “बिल्कुल बकवास” कहकर खारिज कर दिया।

इस बात पर जोर देते हुए कि कथित अवमाननाकर्ताओं का आचरण ड्रग्स और अन्य जादुई उपचार (आपत्तिजनक विज्ञापन) अधिनियम, 1954 के दायरे में है, फिर भी केवल इसलिए कोई कार्रवाई नहीं की गई, क्योंकि बॉम्बे हाईकोर्ट ने 1945 के नियमों के संबंध में आदेश पारित किया।

जस्टिस कोहली ने सवाल किया,

“क्या कोई विनियम अधिनियम से ऊपर है?”

पक्षकारों, साथ ही SLA के संयुक्त निदेशक, जो व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित थे, उनको सुनने के बाद खंडपीठ ने SLA के वर्तमान संयुक्त निदेशक के पूर्ववर्ती को 2 सप्ताह में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें उनकी पोस्टिंग के पूरे कार्यकाल के दौरान लाइसेंसिंग प्राधिकारी के रूप में उनकी ओर से निष्क्रियता को स्पष्ट किया गया हो। इसके अलावा, 2018 से अब तक पद पर रहे सभी जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारियों को भी इसी अवधि में इसी तरह के शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया गया।

प्रस्तावित अवमाननाकर्ताओं के अलावा, बेंच हलफनामे के गवाह (SLA के वर्तमान संयुक्त निदेशक) और उनके पूर्ववर्ती को भी अवमानना ​​के नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक थी। हालांकि, उसने फिलहाल ऐसा करने से परहेज किया।

मामले को 16 अप्रैल को अगले आदेशों (जहां तक प्रस्तावित अवमाननाकर्ताओं का संबंध है) के लिए सूचीबद्ध किया गया।

केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 645/2022

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