अदालती वादे का उल्लंघन करते हुए लगातार भ्रामक विज्ञापन प्रकाशित करने को लेकर पतंजलि आयुर्वेद के खिलाफ अवमानना की कार्यवाही पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में निष्क्रियता के लिए उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण (SLA) को कड़ी फटकार लगाई।
आदेश के हिस्से के रूप में जस्टिस कोहली ने निर्देशित किया,
“[हम] यह जानकर चकित हैं कि फ़ाइल को आगे बढ़ाने के अलावा, राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के भीतर सक्षम अधिकारियों ने कुछ नहीं किया है। भारत संघ और राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण के बीच पत्राचार … की ओर से स्पष्ट प्रयास दिखाता है। इस तथ्य के बावजूद कि राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण को पहली बार भ्रामक विज्ञापनों के बारे में वर्ष 2018 में सूचित किया गया, राज्य के अधिकारियों ने किसी तरह से मामले में देरी की। इन 4/5 वर्षों के लिए राज्य लाइसेंसिंग प्राधिकरण ने गहरी नींद सोते रहे।”
“क्या कोई विनियम अधिनियम से ऊपर है?”
पक्षकारों, साथ ही SLA के संयुक्त निदेशक, जो व्यक्तिगत रूप से अदालत में उपस्थित थे, उनको सुनने के बाद खंडपीठ ने SLA के वर्तमान संयुक्त निदेशक के पूर्ववर्ती को 2 सप्ताह में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया, जिसमें उनकी पोस्टिंग के पूरे कार्यकाल के दौरान लाइसेंसिंग प्राधिकारी के रूप में उनकी ओर से निष्क्रियता को स्पष्ट किया गया हो। इसके अलावा, 2018 से अब तक पद पर रहे सभी जिला आयुर्वेदिक और यूनानी अधिकारियों को भी इसी अवधि में इसी तरह के शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया गया।
मामले को 16 अप्रैल को अगले आदेशों (जहां तक प्रस्तावित अवमाननाकर्ताओं का संबंध है) के लिए सूचीबद्ध किया गया।
केस टाइटल: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन बनाम भारत संघ | डब्ल्यू.पी.(सी) नंबर 645/2022